Questions from Kabir Das (shakhi)


कबीर 

साखी अभ्यास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर: जब हम मीठी वाणी में बोलते हैं तो इससे सुनने वाले को अच्छा लगता है और वह हमारी बात अच्छे तरीके से सुनता है। सुनने वाला हमारे बारे में अपनी अच्छी राय बनाता है जिसके कारण हम आत्मसंतोष का अनुभव कर सकते हैं। सही तरीके से बातचीत होने के कारण सुनने वाले और बोलने वाले दोनों को सुख की अनुभूति होती है।
दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस साखी में कबीर ने दीपक की तुलना उस ज्ञान से की है जिसके कारण हमारे अंदर का अहं मिट जाता है। कबीर का कहना है कि जबतक हमारे अंदर अहं व्याप्त है तब तक हम परमात्मा को नहीं पा सकते हैं। लेकिन जैसे ही ज्ञान का प्रकाश जगता है वैसे ही हमारे अंदर से अहंरूपी अंधकार समाप्त हो जाता है।
ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर: ईश्वर कण-कण में व्याप्त है फिर भी हम उसे देख नहीं पाते क्योंकि हम उसे उचित जगह पर तलाशते ही नहीं हैं। ईश्वर तो हमारे भीतर है लेकिन हम उसे अपने भीतर ढ़ूँढ़ने की बजाय अन्य स्थानों; जैसे तीर्थ स्थल, मंदिर, मस्जिद आदि में ढ़ूँढ़ते हैं।

संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कबीर के अनुसार वह व्यक्ति दुखी है जो हमेशा भोगविलास और दुनियादारी में उलझा रहता है। जो व्यक्ति सांसारिक झंझटों से परे होकर ईश्वर की आराधना करता है वही सुखी है। यहाँ पर ‘सोने’ का मतलब है ईश्वर के अस्तित्व से अनभिज्ञ रहना। ठीक इसके उलट, ‘जागने का मतलब है अपनी मन की आँखों को खोलकर ईश्वर की आराधना करना।
अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर: अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए बड़ा ही कारगर उपाय सुझाया है। कबीर ने कहा है कि हमें अपने आलोचक से मुँह नहीं फेरना चाहिए। कबीर ने कहा है कि हो सके तो आलोचक को अपने आस पास ही रहने का प्रबंध कर दें। ऐसा होने से आलोचक हमारी कमियो को बताता रहेगा ताकि हम उन्हें दूर कर सकें। इससे हमारा स्वभाव निर्मल हो जाएगा।
‘एकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पँडित होइ’ इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर: इस पंक्ति के द्वारा कबीर ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति प्रेम का पाठ पढ़ ले तो वह ज्ञानी हो जाएगा। प्रेम और भाईचारे के पाठ से बढ़कर कोई ज्ञान नहीं है। मोटी-मोटी किताबें पढ़कर भी वह ज्ञान नहीं मिल पाता।
कबीर की उद्धत साखियों की भाषा विशेषता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कबीर की साखियाँ अवधी भाषा की स्थानीय बोली में लिखी गई है। ऐसी बोली बनारस के आसपास के इलाकों में बोली जाती है। यह भाषा आम लोगों के बोलचाल की भाषा हुआ करती थी। कबीर ने अपनी साखियों में रोजमर्रा की वस्तुओं को उपमा के तौर पर इस्तेमाल किया है। अन्य शब्दों में कहा जाए तो कबीर की भाषा ठेठ है। इस तरह की भाषा किसी भी ज्ञान को जनमानस तक पहुँचाने के लिए अत्यंत कारगर हुआ करती थी। कबीर ने अपनी रचना को दोहों के रूप में लिखा है। एक दोहे में दो पंक्तियाँ होती हैं। इसलिए गूढ़ से गूढ़ बात को भी बड़ी सरलता से कम शब्दों में कहा जा सकता है।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट किजिए:

बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
उत्तर: जब बिरह का साँप तन के अंदर बैठा हो तो कोई भी मंत्र काम नहीं आता है। यहाँ पर कवि ने प्रेमी के बिरह से पीड़ित व्यक्ति की तुलना ऐसे व्यक्ति से की जिससे ईश्वर दूर हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति हमेशा व्यथा में ही रहता है क्योंकि उसपर किसी भी दवा या उपचार का असर नहीं होता है।
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढ़ूँढ़ै बन माँहि।
उत्तर: हिरण की नाभि में कस्तूरी रहता है जिसकी सुगंध चारों ओर फैलती है। हिरण इससे अनभिज्ञ पूरे वन में कस्तूरी की खोज में मारा मारा फिरता है। इस दोहे में कबीर ने हिरण को उस मनुष्य के समान माना है जो ईश्वर की खोज में दर दर भटकता है। कबीर कहते हैं कि ईश्वर तो हम सबके अंदर वास करते हैं लेकिन हम उस बात से अनजान होकर ईश्वर को तीर्थ स्थानों के चक्कर लगाते रहते हैं।

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
उत्तर: जब मनुष्य का मैं यानि अहँ उसपर हावी होता है तो उसे ईश्वर नहीं मिलते हैं। जब ईश्वर मिल जाते हैं तो मनुष्य का अस्तित्व नगण्य हो जाता है क्योंकि वह ईश्वर में मिल जाता है। ये सब ऐसे ही होता है जैसे दीपक के जलने से सारा अंधेरा दूर हो जाता है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
उत्तर: मोटी मोटी किताबें पढ़ने से कोई ज्ञानी नहीं बन पाता है। इसके बदले में अगर किसी ने प्रेम का एक अक्षर भी पढ़ लिया तो वो बड़ा ज्ञानी बन जाता है। विद्या के साथ साथ व्यावहारिकता भी जरूरी होती है।

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